AGNIMANTHA
Bhavaprakasha Nighantu : Guduchyadi Varga.
12. Vatahaani
नाम
लै०-प्रेम्ना मुक्रोनेटा ( Premna mucronata Roxb. ) सं०-अग्निमन्थ ( इसकी लकड़ियों को परस्पर रगड़ने से आग निकाली जाती है यज्ञादि में) ; जय ( रोगों को जीतने वाला ), श्रीपर्ण ( सुन्दर पत्रों वाला ), गणिकारिका ( गणिका चासावारिका च-समूह में होने वाला सुन्दर वृक्ष और स्वास्थ्य प्रदान करने वाली), वातघ्नी ( बात को नष्ट करने वाली); हि०-अरनी, गनियार,अनाथ; म-ऐरण, टाकली; गु०-अरणी; ब-गणो भारी; ता०-थलनदी; जे०-नेलीचेट्ट।
Flowers-Corymb, greenish-white with unpleasant smell Calyx 5 toothed clothed with spreading hairs, Corola-greenish white.
Fruit Drupe, globose, black coloured Seeds-oblong.
Flowering – April – May
Fruiting – May- June
- Ashtanga Sangraha mentions Tarkari dvaya.
- Brahatriyis mention 2 type of Agnimantha.
- Shodhala Nighantu mentions Agnimantha and Arani as 2 different varieties.
- Bhavna Mishra mentions 1 variety that is Agnimantha and synonym as Tarkzaari.
- Nighantu Ratnakar mentions Laghu Agnimantha and Brahat Agnimantha.
Karma: Kapha-Vatta Hara, Sathi Hara, Deepana.
Rogahanta : Shotha, Pandu, Vasameha, Sheetapitta, Udard , Kushta , Sthoulya.
प्रयोग
दोष प्रयोग–यह कफ वात जन्य रोगों में प्रयुक्त होता है।
संस्थानिक प्रयोग-बाह्य-कहीं शोथ और पीडा होने पर इसकी पत्तियों को गरम कर बाँधते हैं।
आभ्यन्तर-नाडी संस्थान -यह वातव्याधि में बहुशः प्रयुक्त होता है ।
पाचन संस्थान-यह अग्निमांद्य, आमदोष, विबन्ध आदि में दिया जाता है ।
रक्त वह संस्थान– यह रक्तविकार, हृ दौर्बल्य तथा शोथ में लाभकर है।
श्वसनसंस्थान-कफ के विचारों तथा कास, श्वास, प्रतिश्याय आदि में
देते हैं।
मूत्रवद्दसंस्थान-प्रमेह, विशेषतः वसामय और पूय मेह में यह उपयोगी है ।
अग्निमन्थ के मूल का क्वाथ वसामेह एवं पूय मेह में दिया जाता है। टेकार (C. phlomidis ) मधुमेह में उपयोगी पाया गया है।
त्वचा-शीतपित्त आदि त्वचा के विकारों में अग्निमन्थ के मूल का कल्क सेवन कराते हैं।
सात्मीकरण-ज्वर उत्तर दौर्बल्य, पांडव आदि में पत्रस्वरस तथा छाल का क्वाथ देते हैं।
प्रयोज्य अंग – पत्र , मूलत्वक्
8. Narayana Taila.