Botanical Name : Aquilaria agallocha.
Family: Thymelaeaceae.
Aquilloria, means-Pertaining to Eagle.
agallocha, means to make exceedingly glorious.
Classical Categorization :
Charaka Samhita:Sheetaprashmana, Shwasahara Mahakashaya , शिरोविरेचन , तिक्त स्कन्ध।
Sushruta Samhita: Elaadi gana, Salasaraadi gana.
Bhavaprakasha Nighantu : Karpuraadi Varga.
Synonyms :
1.Loha
2. Pravara
3. Raharham
4. Yogaja
5. Vasheeka
6. Krimijagdham
7. Anayakam
8. Shringajam
9. Sheetaprashmana 10. Vishwadhupkam
11. Doopavasa
12. Varaprasad Kam
13. Krimij
14. Jongaka
Latin-एक्वाइलेरिया अगलोचा ( Aquilaria agallocha Roxb. );
संस्कृत -अगुरु, लोह (लोहवद् भारी तथा कृष्ण होने के कारण), कृमिज, कृमिजग्ध( कृमियों के द्वारा वृक्ष में ग्रंथि बनने से अगुरुसार उत्पन्न होता है )
हिन्दी- मराठी , गुजराती – अगर
बंगाली-अगरु;
तामिल-आगलि चन्द
तेलगु-अगुई;
अरबी-ऊद;
अंग्रेजी-एलो वुड(Aloe wood ), ईगल वुड ( Eagle wood )
Habitat:
It grows commonly in Eastern parts of India.
External Morphology:
It is an evergreen large tree, leaves-linear lanceolate and obovate in shape, flowers small greenish in colour, Fruit capsule, slightly compressed.
स्वरूप-इसका चिरहरित ६०-७० फीट ऊँचा तथा ५-८ फीट मोटा वृक्ष होता है। काण्डत्वक्-बाहर से बिलकुल कागज के समान पतली होती है जिसे प्राचीन काल में लोग भोजपत्र के समान लिखने के काम में लाते थे।
Varieties :
Raja Nighantu mentioned different varieties of Agaru as:
Krishna agaru
Swadu Agaru
Daha agaru
Kashtha agaru
Mangalya agaru
Best variety is Mangalya agaru.
Important Phytoconstituents :
Heart wood having Liriodenine, Agarol, Agarospirol, Alpha and Beta agarospirol, Agarospirol Essential oil from wood – Selinene, Dihydro selinene, sesquiterpene alcohol, Aquillo Chin, Dihydroxyarofuran, Noroxoagarofuran.
Rasapanchaka :
Rasa : Katu, Tikta.
Guna: Tikshana, Laghu, Snigdha.
Virya : Ushna.
Vipaka : Katu.
Dosha Karma : Vatta kapha shamak.
Rogahanata :
Karna roga, Akshi roga, Kushtha, Kasa, Hikka, Shwasa, Shotha
प्रयोग
दोष प्रयोग-यह कफ वात रोगों में प्रयुक्त होता है।
संस्थानिक प्रयोग-बाह्य -शैत्य, दुष्ट व्रण, चर्मरोग, शोथ, वेदनायुक्त विकार ( संधिवात, आमवात आदि ) में अगुरु का लेप करते हैं ।
आभ्यन्तर-नाडी संस्थान-वातव्याधि में प्रयुक्त होता है ।
पाचनसंस्थान-मुख की दुर्गन्ध नष्ट करन के लिए इसे चबाते हैं । अग्निमांद्य,आमदोष तथा कोष्ठगत वात के शमन के लिए यह उपयोगी है।
रक्तवह संस्थान हद दौर्बल्य तथा रक्तविकार (वातरक्त आदि ) में प्रयुक्त होता है।
श्वसन संस्थान-कास, श्वास, हिक्का में प्रयुक्त होता है । श्वास में अगुरु का तेल १-२ बन्द पान में रख कर खिलाते हैं । कफरोगों में इसका नस्य भी देते हैं /
प्रजनन संस्थान-वाजीकरण अर्थ दिया जाता है।
मूत्रवह संस्थान-शय्यामूत्र तथा हस्तिमेह में यह उपयोगी है
त्वचा-चर्म रोग में देते हैं ।
तापक्रम-शीतज्वर में उपयुक्त होता है ।
सात्मीकरण-दुर्बलता में उपयोगी है।
प्रयोज्य अंग-काण्डसार, तैल ।
Amayika Prayoga:
1.Hikka shwasa : Agaru churana taken with Madhu is very effective in Hikka and Shwasa.
2.Kasa: In Kasa, Agaru churana should be given with madhu
3.Lavanameha: Kwatha prepared with patha and Agaru in is useful .
in lavan meha
4. Shotha: Lepa prepared with agaru is effective in Shotha
Matra :
1. Churana 625mg-1.875gm9
2. Taila 1-2 bindu
Yoga/Important Formulations :
1. Agaruvadya Taila
2.Madhukaasava
3.Amalaki Rasayana
4.Mahasugandhi agada
5. Kampillakadya Taila 6. Lavangadi Taila
7. Anu Taila